Sunday, November 21, 2010

जब राहुल टकराये भिखारी से और यम से नगर निगम व दिल्ली सरकार के कर्मचारियों की हुई मुक्का-लात Rahul met Beggar, Municipal and Delhi Govt. Workers vs. Yamraj

मेठी में एक भिखारी कुछ इस अंदाज़ में भीख माँग रहा था- भगवान के नाम पर दे दे "बाबा", अल्लाह के नाम पर दे दे "बाबा"।

वहीं से राहुल जी गुजर रहे थे।

राहुल गाँधी: तुमने पुकारा और हम चले आये, कहाँ है तुम्हारा घर... कोई बतलाये, तुमने पुकारा और हम चले आये। अमेठी मेरा संसदीय क्षेत्र है। मेरा ही नहीं मेरे परिवार का भी घर है। तुम किस जगह रहते हो?
भिखारी: राहुल बाबा, आप मेरे घर का क्या करेंगे? मैं तो जहाँ जगह मिलती है वहाँ बैठ जाता हूँ।
राहुल जी: तो फिर मैं आज रात कहाँ रुकूँगा? मैंने तो मीडिया को अमेठी आने को कह दिया था। ओह...
भिखारी: राहुल जी, आप अमेठी के लिये बहू क्यों नहीं ले आते? हर कोई यही चाहता है...
राहुल जी: आप सही कहते हैं। जल्द ही आपको खुशखबरी सुनने को मिलेगी। पर आप इतने उत्सुक क्यों हैं?
भिखारी: आप को दुल्हन मिलेगी जो आपके लिये अच्छा खाना बनायेगी और फिर हमें भी राहत मिलेगी जो आप हमारे यहाँ आते हैं। जिन गरीबों के पास खाने को रोटी नहीं वो आपको रोटी खिलाता है।
राहुल: तुम दलित हो? मुसलमान हो?
भिखारी: नहीं राहुल बाबा।
राहुल: फिर मैं तुम्हारे घर नहीं रुक सकता।

वहाँ से राहुल चल देते हैं। रास्ते में एक रिपोर्टर से टकरा जाते हैं। पीछे भिखारी बुड़बुड़ा कर रह जाता है (दलित गरीब और ब्राह्मण गरीब में क्या अंतर है?)

रिपोर्टर: सर, एक बात बतायें। आपने या आपकी सरकार ने दलितों व मुसलमानों के लिये क्या किया है?
राहुल: हमने दलितों व पिछड़ों को आरक्षण दिया है। और मुसलमानों के लिये......ह्म्म्म्म
रिपोर्टर: सुना है कि आपकी सरकार नीतीश सरकार का फ़ार्मूला लगा रही है। उन्होंने मुस्लिम समुदाय की लड़कियों के लिये रोजगार योजना चालू की थी जिसके तहत उन्हें कढ़ाई बुनाई व अन्य रोजगार शिक्षा मुफ़्त दी जा रही है। और जो कुछ वे बना रही हैं उन्हें बेच कर आमदनी भी हो रही है जिससे उनका विकास हो रहा है।
राहुल: मुझे सिब्बल जी से बात करनी होगी फिर कोई टिप्पणी करूँगा।

(पर्दा गिरता है)

२००५ में विश्व बैंक के अनुसार भारत के ४१ फ़ीसदी लोग अंतर्राष्ट्रीय गरीबी रेखा (१.२५ डालर प्रति दिन यानि ६२ रूपये प्रतिदिन) से भी नीचे है। हालाँकि इस आँकड़े में सुधार हुआ है जब १९८२ में भारत के साठ फ़ीसदी लोग गरीबी रेखा से नीचे थे। शहर में लोग औसतन २१.६ रू और गाँव में महज १४.३ रू प्रतिदिन कमाते है। सोच सकते हैं कि हालत कितनी खराब है। मुझे मालूम है कि ये ब्लॉग पढ़ने वाले १००० रूपये प्रतिदिन से अधिक कमाई करते होंगे। पर रौंगटे तब खड़े हो जाते हैं जब यह पता चले कि दुनिया के एक-तिहाई गरीब भारत में हैं। और जब राजनेता आरक्षण के नाम पर दलित गरीब व अन्य गरीब में अंतर करते हैं तो आप समझ सकते हैं कि एक गरीब पर क्या गुजरती होगी। फिर क्यों न वो भी आरक्षण की माँग करे?

और अधिक जानने के लिये यहाँ जायें।
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नगर निगम और दिल्ली सरकार के कर्मचारी मरने के बाद ऊपर यमराज के पास पहुँचे।

यमराज: कुछ साल पहले दिल्ली में इमारत गिरी थी, उसका जिम्मेवार कौन था?
कर्मचारी: यम जी, उसका जिम्मेवार तो आपकी बहन यमुना थीं।
यमराज: तुम लोगों की ये हिम्मत!!!!! गुस्ताख।
कर्मचारी: वह यमुना नदी के किनारे था और बाढ़ की वजह से इसकी नींव कमजोर पड़ गई थी।
यमराज: इमारत गिरने पर तुम दोनों जागे और फिर आनन फ़ानन में ३८ इमारतों को खाली करने का नोटिस भेज दिया। ये भी न सोचा कि वे लोग बाद में कहाँ रहेंगे?
कर्मचारी: वो हमने ...वो उनके लिये टैंट..
यमराज: जब मकान बन रहे होते हैं, तुम लोग तब पैसा खाते हो और मकान गिरने के बाद उसका इल्जाम यमुना पर लगाते हो!!! तुम्हीं लोगो ने ही इतना बड़ा अक्षरधाम और खेलगाँव यमुना के रास्ते में उसके ऊपर ही बनवा दिया। तब तो तुम्हें विदेशी कमाई नजर आ रही थी। अब बोलो? उन बेघरों को उसी अक्षरधाम और खेल गाँव में क्यों नहीं ठहरा दिया?
कर्मचारी: वो..वो... ऐसा कैसे करते हम?...

विकीपीडिया के अनुसार:

अक्षरधाम को सन २००० अप्रैल में बनाने की इजाजत डी.डी.ए ने दी। और नवम्बर २००० में बनना शुरु हुआ। नवम्बर २००५ में यह बनकर तैयार हुआ। जमीन के नीचे मजबूती के लिये १५ फ़ीट तक ५० लाख ईंटें लगाईं गई। और इस तरह यमुना के ठीक ऊपर कंक्रीट का जाल बिछा दिया गया और उसका रास्ता बदल दिया गया। यमुना तो और बेहतर करने की बजाय अब खेलगाँव बना दिया गया और नदी से नाला बना दिया गया है।
आप सोच रहे होंगे कि यमराज ने कर्मचारियों को नरक भेजा या स्वर्ग? उन्होंने उन्हें वापस मृत्युलोक भेज दिया। वे नहीं चाहते थे कि यमलोक में भी भ्रष्टाचार फ़ैले।
(पर्दा गिरता है)


भारत में इतनी परेशानियाँ हैं और इतने विवाद हैं, कि हम सभी कहीं न कहीं उनका हिस्सा बनते हैं दुखी होते हैं। दुखी व परेशान होना उपाय नहीं है। जो भ्रष्टाचार व अन्य बुराइयाँ हम समाज व राजनीति में देखते हैं उन मुद्दों को उठाना बहुत जरूरी है। "गुस्ताखियाँ  हाजिर हैं" स्तम्भ की शुरुआत इसी मिशन का एक हिस्सा है। यहाँ हँसी मजाक भी होगा और गम्भीर मुद्दे भी उठाये जायेंगे। ये आवाज़ आगे और बुलंद होगी यही उम्मीद है।
अगले सप्ताह नईं गुस्ताखियों के साथ फिर हाजिर होंगे। तब तक के लिये नमस्कार।

गुस्ताखियाँ जारी हैं.....

2 comments:

Tapesh Maheshwari said...

you always comeup with good material, but this time presentation was ultimate :)

Kudos

neelam said...

really ,very nice ...................