Sunday, July 1, 2007

हिंदयुग्म पर मेरी कविता

http://merekavimitra.blogspot.com/2007/06/blog-post_22.html

कविता- आक्सीज़न का सिलेंडर

पापा पापा, वो वाला सिलेन्डर दिलवाओ ना,
बेटा जिद करके इशारे से बोला।
बेटा, वो आपको बाद में दिलवायेंगे..
आपने तो अभी घर वाला सिलेंडर भी नहीं खोला॥

पापा उसमें से स्ट्रॉबेरी की खुशबू आती है, मुझे तो वैनीला पसंद है।
पापा हैरान परेशान सोचने लगे,
हम तो खुली हवा में साँस लेते थे,
इसके पास तो ऑक्सीजन में वैराईटीज़ की गँध है॥

रे इंसान तेरी अजीब माया है,
फ़्री की ऑक्सीजन को आज 200 रू प्रति लीटर बनाया है।
पहले तो सिर्फ़ पानी में कम्पीटीशन था,
आजकल ऑक्सीजन का भी बिज़नेस चलाया है॥

बाप ने बेटे को बहलाया-फुसलाया,
फ़ेयर से खरीदेंगे, यह कहकर वापस चलने का मन बनाया॥

थोड़ी दूर चलते ही बेटा कूदने लगा,
पापा वो देखो पेड़! यह कहकर उसकी तरफ़ दौड़ने लगा॥

बेटा बोला,पापा इससे कागज़ बनता था न, हमें सब पढाया गया है,
ऑनलाइन क्लासिस में ट्रीज़ऑनलाइन.कॉम पर सब बताया गया है॥

घर पहुँचते के साथ ही टीवी पर खबर थी..
मुम्बई में सवेरे से ही हल्की बारिश हो रही थी।

पापा ये आसमान से पानी कैसे गिरता है, मुझे भी देखना है।
आपने कहा था छुट्टियों में मुम्बई की बारिश दिखाने चलना है॥

आज 2147 में हर घर के बाहर एक मॉल होना चाहिये..
ऑक्सीजन के सिलेंडर का अच्छा खासा मोल होना चाहिये॥

हँसियेगा नहीं, ये मेरा नहीं कहना है..
आदमी ऐसा कर रहा है..ज़माने का ये कहना है॥

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